करुण रस की परिभाषा :-

       करुण रस का स्थाई भाव 'शोक' होता है। जहाँ 'शोक' नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव के संयोग से रस के रूप में परिणत हो। वहां 'करुण रस' होता है।

 उदाहरण :-

                हे खग-मृग हे मधुकर श्रेनी,

                   तुम देखी सीता मृगनैनी।

नोट :- इस उदाहरण को आप वियोग रस में भी उपयोग कर सकते हैं।